परिवार वाले 52 साल बाद भूल गए अपने कैदी पिता को । देखता रहा रास्ता जेल से छूटने के बाद

परिवार वाले 52 साल बाद भूल गए अपने कैदी पिता को । देखता रहा रास्ता जेल से छूटने के बाद  । जेल प्रशासन ने दो वार्डेन की अभिरक्षा में कैदी को उसके घर भेजा

 

परिवार वाले 52 साल बाद भूल गए अपने कैदी पिता को । देखता रहा रास्ता जेल से छूटने के बाद  । जेल प्रशासन ने दो वार्डेन की अभिरक्षा में कैदी को उसके घर भेजा

वाराणसी। दिन शुक्रवार, स्थान सेंट्रल जेल गेट के बाहर का परिसर, रात का पहर। बूढ़ी आंखों से अंबिका अपनों की तलाश करने के लिए इधर-उधर ताक-झांक रहा था। कुछ देर तक तलाश कर रही उसकी आंखें खुले आसमान में एक जगह ठहर गईं और जुबां पूरी तक खामोश से हो गए।

 

 

 

सेंट्रल जेल की दहलीज लांघ बाहर निकले कैदी अंबिका के माथे पर जो लकीरें थीं वह पूरी दास्तां कह रही थीं कि जो बच्चे थे वह जवान हो गए। जवान थे जो, वह बूढ़े हो गए और जो बूढ़े थे वह काल के गाल में समा गए। मगर, फिर भी ‘अंबिका’ की आस नहीं टूटी।

जवानी में सेंट्रल जेल पहुंचे तो 52 साल बाद 92 वर्ष की अवस्था में जेल से बाहर निकले। सत्ता बदली तो कानून की कुछ नीति भी बदली और बदली तो डेढ़ दशक तक जेल में सजायाफ्ता कैदियों की रिहाई का रास्ता भी साफ हुआ। एक अगस्त नीति के तहत सेंट्रल जेल से 269 कैदियों की रिहाई का सिलसिला शुरू हो गया है। अब तक 232 कैदियों को रिहाई दे दी गई है।

शुक्रवार की रात 69 कैदियों में रिहा हुए 92 वर्ष के अंबिका की कहानी भी काफी दिलचस्प है। गांव में मारपीट के दौरान अपराध के दलदल में फंसे अंबिका के हाथों कत्ल हुआ और 1966 में उम्र कैद की सजा हुई तो सेंट्रल जेल ही स्थाई पता हो गया।

 

बिहार गोपालगंज बिहार के अंबिका प्रसाद की रिहाई की सूचना परिजनों को दी गई लेकिन लेने कोई नहीं पहुंचा। इंतजार के बाद जेल प्रशासन ने दो वार्डेन की अभिरक्षा में अंबिका को गोपालगंज बिहार के लिए भेज दिया।

 

 

 

आंखों में चमक थी, जुबां खामोश

 

 

 

घर परिवार में सिर्फ बड़े भाइयों के बेटे और बहू है तो बाकी अंबिका का कोई हमदर्द भी नहीं है। शायद यही कारण रहा कि परिजन सूचना देने के बाद भी जेल नहीं पहुंचे। एक तरफ बाकि कैदियों के परिवारीजन एक दूसरे से गले मिल खुशी जाहिर कर रहे थे तो वहीं अंबिका उदासी भरी नजरों से बाकियों को निहार रहा था।

 

 

 

जेल अधीक्षक ने समझा मर्म जेल अधीक्षक अंबरीश गौड़ ने मर्म को समझा और दो वार्डेन को अंबिका के साथ लगाकर घर की ओर रवाना किया। सेंट्रल जेल के डिप्टी जेलर डीपी सिंह बताते है कि आचरण व व्यवहार में अंबिका का कोई सानी नहीं था बाकि कैदियों से काफी अलग और शांत स्वभाव का रहा

 

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