मीडिया -WOOD के अमिताभ और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता रवीश कुमार के प्राइम टाइम में कई फिल्मी किरदारों को असल में जीये

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 नोट – रवीश जी का  इस न्यूज में दिए  विज्ञापन से 

कोई संबंध नहीं है

रवीश कुमार जी पब्लिक प्रेस पार्टनर न्यूज  कांसेप्ट से कोई संबंध है ।

Ndtv के पत्रकार रविश  कुमार  का amazon  के किसी भी  प्रोडक्ट सेल  या प्रचार  और मीडिया e- बिजनेस के प्रोडक्ट सेल और विज्ञापन से ndtv के पत्रकार का  रविश जी का संबंध है । 

 

 

आज मुझे MEDIA-WOOD के अमिताभ रवीश कुमार जी का बधाई संदेश का रिप्लाई आया। 2 अगस्त को रैमॉन मैगसेसे के पुरस्कार विजेता रवीश कुमार जी को मैंने बधाई संदेश भेजा था। मैं ईश्वर से इनके नोबेल पुरस्कार की कामना करता हूं।

रविश जी बहुत सरल व्यक्तित्व के इंसान हैं।
मुझे रवीश कुमार जी में बॉलीवुड के अमिताभ बच्चन के फिल्मी किरदार की झलक दिखाई देती है।

इसलिए मैं  रविश जी को media-wood का अमिताभ ,रवीश कुमार बोलता हूं।

रवीश कुमार के व्यक्तित्व की जानकारी उनसे एक बार मिलने के बाद और बात करने से पता चली।

वह एक अच्छे इंसान हैं। एक बड़े पत्रकार के रूप उनमें कभीं घमंड नही देखा।

वह किसी से बात करते हैं तो उसको बहुत ध्यान से समझते ना कि सामने वाले व्यक्ति को अपने बड़े पत्रकार का घमंड दिखा कर उस व्यक्ति की सोच या विचार को दबाते। वह हरदम दूसरे की सोच समझने की कोशिश करते हैं। जबकि उनके पास बहुत कम समय रहता है

मुझे हर दम रवीश कुमार जी में बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन की झलक दिखती है । मैं रविश कुमार को विभिन्न टाइप रोलो में दिखता हूं ।

 

कभी प्राइम टाइम में किसी बच्चे के अधिकार अधिकार के लिए लड़ते हैं

 

कभी किसी मां के अधिकार केलिए  प्राइम टाइम में लड़ते हैं

कभी किसी गांव वाले के अधिकार के लिए प्राइम टाइम में लड़ते हैं

कभी किसी गरीब के अधिकार के लिए प्राइम टाइम में लड़ते हैं

कभी कुलियों के अधिकार के लड़ते हैं

कभी महिलाओं के अधिकार के लिए प्राइम टाइम में लड़ते हैं

कभी पुलिस / सेना  के अधिकारों के लिए प्राइम टाइम में लड़ते हैं

कभी डॉक्टरों के अधिकार के लिए प्राइम टाइम नहीं लड़ते हैं

कभी प्राइम टाइम में शिक्षकों के लिए लड़ते हैं

 

कभी  कृषि मूल्य  के अधिकार के लिए लड़ते हुए सिल्वर स्क्रीन के अमिताभ बच्चन का रोल प्राइम टाइम में करते हैं

 

जो सदैव किसी व्यक्ति के अधिकार के लिए किसी ना किसी के लिए लड़ते रहते है।

जैसे BIG-B अमिताभ जैसे BOLLYWOOD की फिल्मों में गरीबों के लिए , असहाय लोगों के लिए , नेता और प्रशासन और गुंडों से लड़ते रहते हैं।

वैसे ही MEDIA-WOOD के अमिताभ बच्चन रवीश कुमार रोज प्राइम टाइम में अपनी कलम से किसी ना किसी के अधिकार के लिए लड़ते दिखते हैं।

आपको अमिताभ बच्चन की पिक्चर साल दो साल में एक बार सिल्वरस्क्रीन में दिखेगी।

लेकिन आपको रोज अमिताभ बच्चन को देखना है तो रात को 9:00 बजे एनडीटीवी का प्राइम टाइम खोल कर देख लीजिए। आपको खतरो का खिलाडी रविश कुमार ndtv सोमवार से शुक्रवार तक देखने को मिल सकता है।

मुझे आज ही नहीं हर दम से मुझे उनमें “फ़िल्म मैं आजाद हूं” का अमिताभ बच्चन दिखता है। “मैं आजाद हूं” फ़िल्म मुझे बचपन से बहुत प्रभावित की थी

मैं ज्यादा फिल्म नही देखता हूं इसलिए उनकी तुलना ज्यादा फिल्मी हीरो से नहीं कर पाऊंगा।

मुझे कभी रवीश जी में फिल्म “शोले” में धर्मेंद्र के दोस्त अमिताभ बच्चन लगते है। जो अपनी जान खो कर अपने दोस्त की जान बचाते है।

कभी उनमें जंजीर का अमिताभ बच्चन दिखता है।

आज के समय में सरकार की गलत नीति या असफलता के विरुद्ध कलम उठाना अपना सर कलम करने के बराबर ही है। आपको सरकार की सच्चाई बताने में भी जान का खतरा है।

फिल्म में आप अनिल कपूर का रोल करते हुए अमरीश पुरी से तो आप लड़ सकते हो।

लेकिन पत्रकारिता करते हुए असली अमरीश पुरी की गलत नीतियों पर सवाल करके देखना आपकी पेंट गीली हो जाएगी।

इसी अमरीश पूरी के गलत और असफल नीति और खिलाफ समाचार लिखने पर या चैनल में बोलने के बाद आप को  रात में  डर सताएगा  । लेकिन पत्रकार आदत से मजबूर रहता है वह अपने आप को एक देश का धर्म योद्धा समझता है।

जनता को अपने अच्छे भविष्य के लिए
धर्म योद्धाओं के पीछे धर्म के पुजारी और धर्म के फैन बनकर  खड़ा होना रहना चाहिए।

नहीं तो देश के धर्म योद्धा का सर उसकी खुद की तलवार से कट जाता है।

और पत्रकार रूपी धर्म योद्धा इस देश में डायनासोर  जैसी   लुप्त प्राणी बन कर रह जायेगा। आप भविष्य में उनके जीवाश्म से सच लिखने की कहानी की खोज करोगे बस। क्योंकि सच्चे पत्रकार बचेंगे ही नहीं

एनडीटीवी में चिट्ठी छाटने वाले से जीवन सफर शुरू करने वाले का जीवन सफर कठिन होगा। लेकिन वह व्यक्ति अपनी प्रतिभा में मेहनत की परत चढ़ाया और तपा सोना बना।

आज रवीश कुमार कंचन की तरह चमक रहे हैं।

चिट्ठी छाटने वाले मेहनती प्रतिभाशाली इंसान को मैगसेसे अवॉर्ड की ज्यूरी ने पूरे एशिया से छाट निकाला अवॉर्ड देने के लिए। पत्रकारों के लिए गर्व की बात है।

भारत पत्रकारिता में ऐसी अद्भुत घटना के बाद हो सकता है कुछ अच्छे पत्रकारों को बल मिले। और उनमें रवीश की आत्मा समा जाए

रवीश कुमार को मीडिया में गरीबों की आवाज बनने के कारण उनको मैगसेसे सम्मान से नवाजा गया

इसलिए रवीश कुमार जी को सिर्फ उनके अवार्ड के लिए नहीं जानना चाहिए।

उनको उनके पिछले अच्छे काम के लिए जानना चाहिए

उन्होंने क्या कार्य किया उसका अध्ययन करना चाहिए

जनता को रवीश कुमार के काम की जांच करना चाहिए। उनके  किये कार्यों का फैसला आपको सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी में फैलाया कचरा से नहीं करना चाहिए

रवीश कुमार के व्यक्तित्व का फैसला आप उनके कार्य को देखकर करें

आप उनको यूट्यूब में जाकर चेक कर सकते हैं की उन्होंने क्या कार्य किया।

रवीश कुमार द्वारा आपके बच्चों के भविष्य के लिए रिपोर्टिंग और और भी विषय में रिपोर्टिंग की है।

जनता रवीश कुमार की इन रिर्पोटिंग का फैसला ना हिंदुत्व के चश्मे पहन कर करे। ना ही मुसलमान के चश्मा पहन कर करे
। आपको इसके लिए विकास का चश्मा पहन कर रिपोर्टिंग का आकलन करना पड़ेगा।

अब यह पाषाण युग नहीं है अभी 21वीं सदी है

अब आपको यूट्यूब में दुनिया के सभी देशो का विकास और नीतियां दिख जाएंगी आप देश के अच्छे भविष्य का फैसला कर सकते हैं

मैं एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय को भी उतना श्रेय देता हूं।
जिन्होंने भयंकर दबाव और छापो के बाद भी प्राइम टाइम के अमिताभ बच्चन रवीश कुमार को अपनी फिल्म से बाहर नही निकाला।

हम पिक्चर के अमिताभ बच्चन को तो जानते हैं लेकिन उसके पीछे के डायरेक्टर , कैमरामैन, स्पॉटबॉय , मेकअप मैन , सहयोगी आर्टिस्ट, टेक्नीशियन को नहीं जानते।
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सफलता में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। लेकिन आप सफल आदमी को ही क्यों पसंद करते हैं।

मुझे उन पत्रकार दोस्तों और जनता से बहुत नफरत है जो सिर्फ दोस्त के अवार्ड और पैसे को पसंद करते हैं।
अवार्ड के पहले वही लोग उसके कार्यों का लाभ तो लेते रहते हैं लेकिन उसको सम्मान देने में आलस करते हैं।

और सफलता के पहले उसके प्रयासों की निंदा करना चालू रखते हैं। पूरी कोशिश करते हैं कि वह अपने उद्देश्य से भटक जाए।
जीत और अवॉर्ड यह सब इंसान को मिलने वाले तमगे हैं।

लेकिन उसका असली तमगा उसका चरित्र और उसका कर्म है जो मरने के बाद भी नहीं जाता अगले जन्म मे पूण्य बन कर काम आता है।

जरूरी नहीं है कि आपकी किस्मत में आपके काम का यश लिखा हो। कभी कभी आपके काम का यश कोई दूसरा ले जाता है। यश या अवार्ड मिलने वाले व्यक्ति को भी अपने साथियों को नही भूलना चाहिए।

जैसे रवीश कुमार ने अवार्ड के पीछे के लोगों को याद किया। रवीश कुमार ने अपने सभी साथियों का अवार्ड के दिन नाम लिया।

आदमी की छोटी-छोटी हरकतें उसके चरित्र और स्वाभाव को बताती है।

आपको अवार्ड का तमगा मिले ना मिले आप के अच्छे काम आपकी अगले जनम की किस्मत जरूर लिखते हैं। आप जब एक अवार्ड या सुख-यश भोगते हो तो जरूर ध्यान रखिएगा यह अवार्ड आप को आप के सहयोगी और आपके इस जन्म कार्य और पिछले जन्म के कुछ अच्छे कर्म के कारण मिलता है।

अवार्ड या सफलता का सुख भोगते समय आप  ध्यान रखना चाहिए  सुख भी उस तरीके से भोगे जिससे की आपके सुख भोगने से दूसरे को कष्ट न पहुंचे।

और आपका अगला जन्म फिर से इन कर्मों के कारण सुखमय हों।

मेरे हिसाब से रवीश कुमार जी के काम और कर्म बहुत अच्छे थे। उन्होंने प्राइम टाइम न्यूज में लाखों कर्मचारियों कब मुद्दा उठाकर बहाली दिलाई और लोगों को न्याय दिलाया है। उनकी खबरों रिपोर्ट से प्रशासन जागा और भर्तियां निकली।

मैं जनता से भी सीधे-सीधे कहना चाहता हूं अगर आप लोग अच्छी पत्रकारिता और सच्चे पत्रकार को साथ नहीं देंगे तो ध्यान रखिए आने वाले समय में आप की आवाज उठाने वाला कोई नहीं बचेगा

आपको अपने बच्चों के भविष्य के लिए और भ्रष्टाचार के प्रकोप से अपने बच्चे के भविष्य को बचाने के लिए अच्छे पत्रकारों को साथ देना चाहिए।

क्योंकि पत्रकारिता की मुश्किल यह है कि आपके यहां आने वाले ₹3 के पेपर की लागत ₹10 होती है और एक चैनल 30 करोड़ से 200 करोड़ की साल की लागत का होता है पत्रकार का जीवन बहुत कठिन होता है। पत्रकार की स्थिति स्वतंत्र देश के क्रांतिकारी जैसी होती है। तीन स्तंभों को हर कार्य की तनखा मिलती है।
लेकिन ऐसा चौथा स्तंभ है जिसको रोज सुबह तीन स्तंभों के बारे में खबर लिखना पड़ता है

तीनों स्तंभ ईमानदार रहे या नहीं उनको सरकारी तनखा मिलती है।
लेकिन चौथे स्तंभ की तनखे का कोई जुगाड़ नहीं है।
चौथा स्तंभ तीनों स्तंभ के बारे में नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों लिखता है पर इस चौथे स्तंभ की तनखा का कोई जुगाड़ नहीं रहता है सरकार से ।

यह भूखे पेट एक आजादी के बाद के क्रांतिकारी तरीके से जीवन व्यतीत करता है।
एसपी और कलेक्टर उसको अपने साथ चाय पिला लेते हैं पत्रकार उनकी कहानियों को पान ठेले में बता कर पेट भर लेता है।

अपना बच्चों का पेट पालने अब मीडिया लागत निकालने के लिए पत्रकारों को इन तीन स्तंभों से मदद भी लेनी पड़ती है।

और इन तीन स्तंभों की कमियों को और भ्रष्टाचार को भी उजागर करना है।

वैसे ही जैसे जवान बेटे बाप से लड़ाई भी करता है और पॉकेट मनी भी लेता है।

पत्रकारिता दुधारी ऐसी तलवार है जिसका हत्था भी कांटों से भरा है।

आपको अच्छे पत्रकारों का साथ देना चाहिए।

आज के दौर में आप किसी भी पत्रकार से बात करिए और पूछे क्या आप अपने बच्चे को पत्रकारिता में लाएंगे या अपने बच्चे को पत्रकार बनाना चाहेंगे।

आपको जवाब मिल जाएगा।

मैं यह बात मीडिया मैं हाउसेस के मालिकों की नहीं कर रहा हूं ।  मीडिया हाउस सदैव बिजनेस  और बिजनेसमैन की तरह चलते है और

पेट से मजबूर पत्रकार , बिजनेस मैन के डायरेक्शन पर खबर मीडिया हाउस के चैनल में खबर बनाता है।

पत्रकार की स्थिति एक गाड़ी के गियर बॉक्स आयल के  जैसी होती है

। पत्रकार गेयर ऑयल की तरह होती है जो बहुत सारे गियर दातों के बीच में फंसा रहता है।

जहां एक दांते वाला गियर न्यायपालिका का होता है।

दूसरा दांते वाला गियर कार्यपालिका का होता है।

तीसरे दांते वाला गेयर विधायिका का होता

और

बीच में एक पुली /शाफ्ट लगी रहती है जो मीडिया हाउस रहती है।

जब पत्रकार का  का काम ले लिया जाता या जीवन खत्म हो जाता है उसको इंजन के काले ऑयल की तरह एंजिन से बाहर निकाल  दिया जाता है।

और नया ऑयल गेयर बॉक्स में आ जाता है। वह सोचता है मैं ही सब कुछ हूं। मैं नहीं रहूंगा तो गियर खराब हो जाएगा । वो पिछले काले आयल की कहानी भूल जाता है ।

और गेयर के चक्कर में घूमता रहता है। गेयर तो वहीं रहते हैं पर आईल फिर बदल दिया जाता है।

इंसान भी अच्छे बुरे होते हैं वही इंसान पत्रकार पत्रकार बनते। हर आदमी अच्छे इंसान की खोज होती है।

मैं ईश्वर से कामना करता हूं कि रविश कुमार जी को इस जन्म का करम उनको नोबेल पुरस्कार तक ले जाए।

और अच्छी पत्रकारिता के लिए वह पत्रकार और जनता के लिए मनोबल और प्रेरणा बने

देव आशीष झा
संपादक
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25 jul

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