राज्य में सरकार बदली तो यह चर्चा भी चली कि अब नक्सली शायद शांत हो जायेगे।

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को लंबे समय से सरकार बदलने की उम्मीद थी। उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस की सरकार बनी तो नक्सल उन्मूलन अभियान में नरमी बरती जाएगी, लेकिन कांग्रेस की नई सरकार बनने के बाद भी नक्सल नीति पूर्ववत रही। नतीजा यह रहा कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही नक्सलियों ने आक्रामक रुख दिखाना शुरू कर दिया।

इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ही दो टूक कह दिया कि नक्सली हथियार डालें और संविधान में विश्वास जताएं, तभी बातचीत संभव है। इसके बाद नक्सल प्रवक्ता विकास ने प्रेसनोट जारी कर सरकार से किसी भी तरह की बातचीत न करने का फरमान जारी कर दिया था। इस घटनाक्रम के बाद लगातार नक्सल हिंसा के मामले बढ़ते गए।

लोकसभा चुनाव के बहिष्कार पर रहता है नक्सलियों का जोर

छत्तीसगढ़ में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान शांत रहे नक्सलियों के तेवर लोकसभा चुनाव के दौरान इस लिए भी बदल गए क्योंकि उनकी नीति में ही लोकसभा चुनाव के बहिष्कार की बात शामिल है। नक्सली भारतीय गणराज्य से युद्ध करने का दावा करते हैं। लोकसभा चुनाव ही उनके लिए वह अवसर होता है जब वे खुद को राष्ट्रीय चर्चा में ला सकते हैं। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद खामोश बैठे नक्सली अब फिर हिंसा पर उतारू हो गए हैं।

फोर्स के ऑपरेशन से बौखलाहट

राज्य में सरकार बदली तो यह चर्चा भी चली कि अब नक्सली शायद शांत हो गए हैं। इस बीच फोर्स की ओर से लगातार ऑपरेशन किए जाते रहे। दो मामलों में फोर्स पर फर्जी मुठभेड़ के आरोप भी लगाए गए। इन घटनाओं के बाद भी नक्सली कुछ दिन खामोश रहे। फिर उन्होंने राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया। नक्सली पर्चों में मुख्यमंत्री भूपेश पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया जाने लगा।

आदिवासियों को नक्सलियों ने दे रखा है गांव निकाला

पखांजुर से करीब 35 किमी दूर कोयलीबेड़ा-प्रतापपुर मार्ग पर माहला गांव है। इसी से सटे जंगल में गुरुवार को मुठभेड़ हुई। बताया जा रहा है कि माहला गांव के आदिवासियों को आठ साल पहले नक्सलियों ने गांव से बाहर चले जाने का फरमान सुनाया था। वहां के करीब डेढ़ सौ परिवार पखांजुर में पुलिस कैंप के पीछे अस्थाई बस्ती में रहते हैं। चार-पांच महीने पहले बीएसएफ ने माहला में कैंप खोला। नक्सलियों ने कैंप का भारी विरोध किया। ब्लास्ट और फायरिंग भी की लेकिन जवान डटे रहे। कैंप खुलने के बाद ग्रामीण गांव में लौटने लगे हैं। वर्तमान में 50-60 परिवार वहां रहते हैं।

इस साल अब तक मारे गए हैं 17 नक्सली

छत्तीसगढ़ में 2019 में अब तक 17 नक्सली मारे गए हैं। ज्यादातर मामलों में फोर्स ही हावी रही। 26 मार्च को चिंतलनार इलाके के जंगल में दो महिलाओं समेत चार नक्सली मारे गए। इंसास और दूसरे हथियार भी मिले। 7 फरवरी को भैरमगढ़ इलाके के अबूझमाड़ के गांव में दस नक्सली मारे गए। हालांकि ग्रामीणों ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए प्रदर्शन किया। 25 जनवरी को दोरनापाल के गोडेलगुड़ा में एक महिला नक्सली को मारने का दावा किया। बाद में मंत्री कवासी लखमा ने अपनी ही सरकार को पत्र लिखकर मामले की जांच करने और पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग की।

बातचीत पर नहीं बन रही बात

कांगे्रस ने चुनावी घोषणापत्र में बातचीत के जरिए नक्सल समस्या का समाधान करने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद सीएम ने कहा कि हम नक्सलियों से नहीं बल्कि पीड़ित पक्षों से बात करेंगे। कुछ दिन पहले नक्सली प्रवक्ता विकास ने बयान दिया कि सरकार बातचीत का माहौल बनाए तो बात हो सकती है। इसके जवाब में सीएम ने कहा कि नक्सली हथियार छोड़ें और संविधान पर भरोसा करंे तो बात होगी। अब नक्सली कह रहे हैं कि न हम हथियार छोड़ेंगे न बातचीत करेंगे। यानी बातचीत की बात नहीं बन पा रही है।

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